दोहे

 



कौआ करें काँव - काँव, कर्कश सी आवाज़
 कूकती है कोयलियाँ,  करें जगत में राज़

 मीठी बोली काम की, सब देगे ही ध्यान
 कड़वा कहना है बुरा, जग का रखिए ज्ञान

विष लेता है प्राण ही ,  सर काटे तलवार
मीठी - मीठी बात से , जी भर मार कटार

मारे - मरे न जो कभी, करें उसे बदनाम
ह्रदय धात है शूल सा ,जाए परम के धाम

तिरछी दृष्टि काक की , देखत है हर कोय
ढोंगी करता ढोंग है , जान न  पाता कोय

सच्चा संत क्या करे,   जब उलझे व्यवहार
भूल गई संसार कि अरु, तज के लोक विचार
आराधना राय "अरु"







दोहा एक ऐसा छंद है जो शब्दों की मात्राओं के अनुसार निर्धारित होता 

है. इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं. पहले चरण 

को विषम चरण तथा दूसरे चरण को सम चरण कहा जाता है. विषम 

चरण की कुल मात्रा 13 होती है तथा सम चरण की कुल मात्रा 11 होती 

है. 

अर्थात दोहा का एक पद 13-11 की यति पर होता है. यति का अर्थ है 

विश्राम.

यानि भले पद-वाक्य को न तोड़ा जाय किन्तु पद को पढ़ने में अपने आप 

एक विराम बन जाता है.







   




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